-गंगा तटवर्ती पाँच राज्यों व गंगा बेसिन के पुरोहितों ने पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में किया विश्वशांति यज्ञ
-परमार्थ निकेतन, नमामि गंगे, अर्थ गंगा और जल शक्ति मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित
ऋषिकेश। मां गंगा केवल एक नदी नहीं, भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है। सभ्यता का स्रोत, अध्यात्म का आधार और 40 प्रतिशत से अधिक भारतीयों की आजीविका का आधार, यह एक राष्ट्रनाड़ी है जिसे सुरक्षित रखना केवल सरकारों का नहीं, हर नागरिक, हर पुरोहित, हर युवा और हर परिवार का कर्तव्य है।
परमार्थ निकेतन में गंगा जी के प्रति जागरूकता एवं आरती प्रशिक्षण हेतु पाँच दिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ, जिसमें गंगा तटवर्ती पाँच राज्यों, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल, तथा विस्तृत गंगा बेसिन से जुड़े पुरोहित, रिचुअल, प्रैक्टिशनर तथा युवा प्रशिक्षु शामिल हुए।
कार्यशाला का उद्घाटन पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सान्निध्य में हुआ। उद्घाटन के उपरान्त विश्वशांति यज्ञ किया, जिसमें पुरोहितों ने सहभाग किया।
पूज्य स्वामी जी ने अपने संदेश में कहा कि अब समय दान लेने का नहीं, नदियों को दान देने, कर्ज चुकाने का समय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सदियों से नदियाँ हमें जल, जीवन, संस्कृति, श्रद्धा और अर्थ देती रही हैं, और अब उनकी रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। पुरोहित समाज को चाहिए कि वह समाज को केवल पूजापाठ तक सीमित न रखकर जलसंरक्षण, स्वच्छता, प्लास्टिकमुक्त घाट और पर्यावरण रक्षा का नेतृत्व करे।
स्वामी जी ने कहा कि “पुरोहित” शब्द केवल वेदमंत्रों का ज्ञाता नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के पथप्रदर्शक है। पुरो अर्थात् आगे, हित अर्थात् कल्याण, जो समाज से पहले खड़े होकर उसके लिए हित का मार्ग खोले, वही सच्चा पुरोहित है।
स्वामी जी ने कहा कि मां गंगा अगर सुरक्षित नहीं, तो मानवता की साँसें सुरक्षित नहीं रह सकती। पुरोहित, केवल संस्कारों का सेतु नहीं, समाज परिवर्तन के नेतृत्वकर्ता है। उन्होंने कहा कि आरती, परंपरा को भावनात्मक भक्ति, अनुष्ठान से आगे बढ़ाकर पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता संदेश और जनता में जिम्मेदारी जगाने का अभियान बनाना होगा।
इस कार्यशाला का फोकस मात्र अनुष्ठान शिक्षण नहीं, बल्कि सम्पूर्ण चरित्र निर्माण है। आरती, हवन और मंत्रोच्चार में शुद्धता, जल, संरक्षण एवं कचरा प्रबंधन की ट्रेनिंग के साथ गंगा संरक्षण के वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं की शिक्षा प्रदान की जाती है। विशेषज्ञों ने गंगा जी के वर्तमान संकटों पर महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किये, रासायनिक अपशिष्ट, सीवेज, प्लास्टिक, अवैज्ञानिक निर्माण और धार्मिक कचरा आदि के प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
स्वामी जी ने कहा कि पुरोहित की समाज में भूमिका निर्णायक होती है, प्रत्येक गंगा घाट पर जनता का पहला संपर्क पुरोहित से ही होता है इसलिये उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
