हरिद्वार। अध्यात्म चेतना संघ की ओर से मोतीमहल मंडपम्, ज्वालापुर में आयोजित किये जा रहे श्रीमद्भागवत भक्ति यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा वकासुर और अघासुर के वध की लीलाएँ सुनाते हुए कथा व्यास आचार्य करुणेश मिश्र ने कहा कि “वक दम्भ और अभिमान का प्रतीक है, जबकि अघ पाप का प्रतीक है। भगवान ने पाप को मिटाने से पहले पाप के कारण अर्थात् अभिमान को मिटाया है।”
कथा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्य करुणेश ने कहा कि तीन प्रकार के मनुष्य भगवान को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं, एक वे जो जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में भी कभी हिम्मत नहीं हारते और भगवान की कृपा का अनुभव कर उसे स्वीकार कर लेते हैं, दूसरे जो जीवन में आने वाले तमाम दुखों को स्वयं अपने ही किए हुए कर्मों के परिणाम के रूप में देखकर स्वयं में सुधार करता रहता है और तीसरे वे जो मन कर्म और वचन से सच्चे अर्थों में ईश्वर को सदा नमन और उसका भजन करना सीख जाता है।”
आचार्य ने भगवान द्वारा कालिया मर्दन की कथा सुनाते हुए नाग पत्नियों पर भगवान की कृपा के दर्शन कराये। इस प्रसंग के अन्तर्गत कथा व्यास ने कहा कि- “यमुना के रंग की तरह मनुष्य का अंतर्मन भी कालिमा लिये हुये है। वहाँ से भी कालिया नाग रूपी विकारों से मुक्ति के लिये हमें भगवान का चिंतन व प्रार्थना करते रहना चाहिये।” इसके बाद चीर-हरण व महारास की कथा सुनाते हुए आचार्य जी ने प्रसंग के माध्यम से शुद्ध व सात्विक जीवन व्यतीत करने का आग्रह किया। इसी के साथ गोवर्धन लीला के इन्द्र के अभिमान को शांत करने तथा रुक्मिणी मंगल की लीलाएँ भी उल्लास हो आनन्द के वातावरण में सम्पन्न हुई।
प्रतिदिन की भाँति कथा का विश्राम भगवान की आरती व प्रसाद वितरण के साथ हुआ। आज की कथा में मुख्य यजमान प्रभाष कंसल व श्रीमती ममता कंसल के साथ-साथ
योगाचार्य विशाल शर्मा, अशोक सरदार, ब्रजेश शर्मा, रवीन्द्र सिंघल, योगेश शर्मा, अर्चना वर्मा तिवारी, अशोक गुप्ता, उमेश खेवड़िया, सतीश श्रीकुंज, डाॅ० राजेश उपाध्याय, कमला कांत शर्मा, प्रद्युम्न किशोर शर्मा, प्रदीप सिखौला सहित अनेक यजमान, अध्यात्म चेतना संघ के अनेक पदाधिकारी व सदस्य प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
